किसान मटर की उन्नत खेती से प्राप्त करें अधिक पैदावार, जानिए बेहतरीन तकनीक

मटर की उन्नत खेती से अधिक उत्पादन की दिशा में कदम

किसान मटर की उन्नत खेती से प्राप्त करें अधिक पैदावार
किसान मटर की उन्नत खेती से प्राप्त करें अधिक पैदावार

किसान अब मटर की खेती में उन्नत तकनीक का उपयोग करके अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। मटर दलहनी सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसकी खेती से न केवल अधिक उपज मिलती है, बल्कि यह भूमि की उर्वरता को भी बढ़ाता है। मटर भारतीय रसोई में एक प्रिय सब्जी है, जो अपने पोषक तत्वों के लिए प्रसिद्ध है। इसमें प्रोटीन, शर्करा, विटामिन सी और फास्फोरस की प्रचुर मात्रा होती है। वर्तमान समय में मटर को संरक्षित करके साल भर बाजार में बेचा जाता है।

मिट्टी की तैयारी और बुआई का सही समय

मटर की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पीएच मान 6-6.5 वाली दोमट और रेतीली मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। खरीफ फसल की कटाई के बाद गहरी जुताई करनी चाहिए और फिर खेत को समतल और मुलायम बनाने के लिए 2-3 बार हल, कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई करें। मिट्टी में नमी का होना आवश्यक है, ताकि अंकुरण अच्छे से हो सके। यदि खेत में दीमक या अन्य कीटों का प्रकोप हो तो फोरेट का उपयोग करें।

उन्नत किस्मों का चयन

मटर की उन्नत किस्मों में जेएम 6, प्रकाश, केपीएमआर 400, आईपीएफडी 99-13, आईपीएफडी 1-10 और आईपीएफडी 99-25 प्रमुख हैं, जिन्हें खेती में चुना जा सकता है।

यह भी जरूर पड़े – Garlic Farming: वैज्ञानिक पद्धतियों से लहसुन की खेती करें और कमाएं शानदार मुनाफा

बीज दर, दूरी और बुवाई

मटर की बुवाई मध्य अक्टूबर से नवंबर तक की जा सकती है। सामान्यतः 70 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है, जबकि देर से बुवाई में 90 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को 5 से 7 सेमी गहराई में और 30 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए। बौनी किस्म के लिए बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। मटर को गेहूं और जौ के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में भी बोया जा सकता है।

बीज उपचार

बीजों को राइजोबियम संवर्धक कल्चर से उपचारित करना चाहिए। इसके साथ ही थाइरम और कार्बेन्डाजिम जैसे कवकनाशकों का उपयोग भी बीज जनित रोगों के नियंत्रण के लिए करना चाहिए। चूषक कीटों से बचाव के लिए थायामेथोक्सम का उपयोग करें। इसके बाद राइजोबियम और पीएसबी कल्चर का उपचार करें, जिससे नाइट्रोजन का स्थिरीकरण और फास्फोरस का सुधार हो सके।

उर्वरक का प्रयोग

फसल के लिए उर्वरक का चयन मृदा परीक्षण के आधार पर करें। लंबी किस्मों के लिए नाइट्रोजन 20, फास्फोरस 40, पोटाश 40 और सल्फर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बौनी किस्मों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर की आवश्यकता होती है।

सिंचाई

मटर की फसल में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, लेकिन शुरुआती दौर में और सर्दियों में वर्षा के आधार पर 1-2 सिंचाई की जाती है। फूल आने और फली बनने के समय हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। ध्यान रखें कि पानी फसल में जमा न हो।

यह भी जरूर पड़े- Mandi Bhav : कृषि जिंसों के ताजा मंडी भाव: गेहूं, सोयाबीन, और अन्य फसलों के बढ़ते दामों पर एक नजर

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार को समय-समय पर निकालने से फसल को पोषक तत्वों और पानी की अधिक उपलब्धता मिलती है, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ती है। निराई-गुड़ाई से पौधों में बेहतर वायु संचार होता है और शाखाओं का उत्पादन भी बढ़ता है।

कटाई, गहाई और भंडारण

मटर की फसल 130 से 150 दिन में पककर तैयार होती है। कटाई के बाद फसल को 5-7 दिन धूप में सुखाकर मड़ाई करें। मटर के बीजों को अच्छे से सुखाकर सुरक्षित स्थान पर भंडारित करें और कीटों से बचाव के लिए एल्युमिनियम फास्फाइड का उपयोग करें। उचित कृषि प्रबंधन से प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल मटर की उपज प्राप्त की जा सकती है।

Leave a Comment