Kheti : सरसों की फसल में बीमारियों की पहचान और रोकथाम के आसान तरीके

Kheti : सरसों की फसल
Kheti : सरसों की फसल

Kheti : सरसों की फसल में बीमारियों की पहचान और रोकथाम के आसान तरीके

Kheti : सरसों की फसल में बीमारियों की पहचान और रोकथाम के आसान तरीके

Kheti : सरसों रबी की प्रमुख फसलों में से एक है, जो हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। सरसों की खेती में पानी की जरूरत कम होती है, जिससे किसान इसे कम संसाधनों में भी उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

वैज्ञानिक तरीके अपनाने और समय पर सही देखभाल करने से सरसों की पैदावार को और बढ़ाया जा सकता है। आइए, समझते हैं कि सरसों की खेती में होने वाली मुख्य समस्याएं, रोग, और उनकी रोकथाम के उपाय क्या हैं।

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सरसों की खेती में रोग और उनकी पहचान

सरसों की फसल में रोगों की पहचान और समय पर रोकथाम करना बहुत जरूरी है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की खेती के दौरान होने वाले रोगों और उनसे बचाव के उपायों पर सुझाव दिए हैं।

1. अल्टरनेरिया ब्लाइट

  • लक्षण:
    • पत्तियों और फलियों पर गोल, भूरे रंग के धब्बे।
    • कुछ समय बाद ये धब्बे काले रंग के हो जाते हैं और पत्तियों पर छल्ले दिखाई देते हैं।
  • रोकथाम:
    • मँकोजेब (डाइथेन एम 45) 600 ग्राम को 250-300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
    • छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर 3-4 बार करें।

2. फुलिया या डाउनी मिल्ड्यू

  • लक्षण:
    • पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे।
    • ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है, और धब्बों पर चूर्ण जैसा पदार्थ बनता है।
  • रोकथाम:
    • मँकोजेब का छिड़काव अल्टरनेरिया ब्लाइट के लिए दिए गए निर्देशों के अनुसार करें।

3. सफेद रतुआ

  • लक्षण:
    • पत्तियों पर सफेद या क्रीम रंग के धब्बे।
    • तने और फूल का आकार खराब हो जाता है, जिसे “स्टैग हेड” कहते हैं।
  • रोकथाम:
    • मँकोजेब का छिड़काव समय पर करें।

4. तना गलन रोग

  • लक्षण:
    • तनों पर लंबे, भूरे रंग के धब्बे।
    • धब्बों पर सफेद फफूंद जैसी परत बन जाती है।
    • तने टूटने लगते हैं और अंदर काले रंग के पिंड बनते हैं।
  • रोकथाम:
    • 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें।
    • जिन क्षेत्रों में हर साल तना गलन रोग होता है, वहां बिजाई के 45-50 दिन और 65-70 दिन बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें।

रोगों की रोकथाम के सामान्य सुझाव

  1. छिड़काव का समय:
    • फसल पर छिड़काव हमेशा शाम 3 बजे के बाद करें।
    • यह पौधों को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. बीज उपचार:
    • बीज उपचार से रोगों की रोकथाम का अच्छा तरीका है।
    • तना गलन और अन्य बीमारियों के लिए बीजों को उपचारित करना न भूलें।
  3. खाद और पानी का प्रबंधन:
    • गोबर की खाद और संतुलित उर्वरक का उपयोग करें।
    • जरूरत के अनुसार सिंचाई करें, लेकिन जलभराव से बचें।

सरसों की खेती के फायद

  • सरसों की फसल कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।
  • वैज्ञानिक तरीके अपनाकर किसान कम खर्च में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
  • सरसों का उपयोग तेल, पशु चारे, और जैविक खाद के लिए किया जाता है, जिससे बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।

निष्कर्ष

सरसों की खेती किसानों के लिए एक फायदेमंद विकल्प है। फसल में समय-समय पर देखभाल और रोगों की पहचान कर उनका सही तरीके से इलाज करने से पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार बीज उपचार, उचित खाद, और सही समय पर छिड़काव करके किसान कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

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इस सीजन में सरसों की खेती के लिए इन सरल उपायों को अपनाएं और अपनी उपज और आमदनी में बढ़ोतरी करें।

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